हर तरफ चहल-पहल। रोशनियाँ ही रोशनियाँ। फूलों के बीच खड़ा विवाह-मंडप। उसके बीचों-बीच रखा अग्नि-कुंड। उसके एक ओर बैठे वर-वधू। उन दोनों के एक तरफ से मंत्रोच्चार
कर रहे पंडित ने आदेशात्मक लहजे में कहा -
- कन्या के माता-पिता को बुलाइए कन्यादान के लिए।
इससे पहले कि कोई आगे बढ़ता कुँअर ने टोका।
- कन्यादान नहीं होगा।
सभी सन्न रह गए, कन्या पक्ष अचंभे में था कि उनसे ऐसी क्या भूल हो गई! पल भर में ही शहनाई की आवाज थम गई, वीडिओ कैमरे की हैलोजन लाईट बुझ गई। पिता, भाई, फूफा,
मामा सब भागे आए। कानाफूसी होने लगी कि तभी लड़की का स्वर फूटा।
- वर का भी दान होगा...
और अगले ही पल लड़के और लड़की का सम्मिलित स्वर उभरा...
- आज से हम एक हैं पर हमारे माता-पिता दो... हमारे दोनों के माता-पिता आ जाइए।
शहनाई फिर बज उठी।